कलियुग का तथाकथित योगी सात दिन का उपवास नहीं सहन कर सका. हालत बिगड़ गयी. अस्पताल पहुंच गया. सेलाइन और ग्लूकोज लेना शुरू कर देता है. उसके भक्त अभी भी ढिंढोरा पीट रहे हैं कि बाबा अनशन पर हैं लेकिन एक एक करके बाबा रामदेव का भांडा फूट रहा है. रामलीला मैदान में बंदर की तरह उछलकूद करके जान बचाने की कोशिश से लेकर बेचारा बनकर अस्पताल में भर्ती होने तक एक बात साबित हो गयी कि रामदेव योग का मदारी है. उसके पास न तो कोई यौगिक क्षमता और सामर्थ्य है और न ही उसमें आध्यात्मिक मूल्य हैं. अगर ये दोनों तत्व उसमें होते तो उसकी ऐसी दुर्दशा न होती जैसी हो रही है.
एलोपैथी दवाएं उपचार की आखिरी अवस्था नहीं है. बीमार शरीर को ठीक करने के लिए एक सीमा के बाद ऐलोपैथिक मेडिसिन सिस्टम असफल साबित होता है. भारत जैसे रहस्यवादी देश में ऐलोपैथी तब पानी भरने लगता है जब किसी बाबा की जड़ी कैंसर ठीक कर देती है और एलोपैथी के तथाकथित आधुनिक रिसर्च मुंह ताकते रह जाते हैं. लेकिन यह पारंपरिक भारत की गहन विद्या है जो सूफियों, दरवेशों, सिद्धों और संतो के पास पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलती रहती है. चमत्कार के ऐसे हजारों किस्से हमें आकर्षित करते हैं और संयोगवश हमें कभी कभी ऐसे लोगों से मिलने का मौका भी मिलता है. भारतीय सिद्धों, संतो, सूफियों, दरवेशों की इसी परंपरा में आजादी से पहले एक नाम जुड़ा था स्वामी राम का. स्वामी राम का जन्म गढ़वाल के एक दूरस्थ गांव में हुआ था. बचपन का नाम था ब्रजकिशोर धस्माना. विवाहोपरान्त सन्यासी हुए और जल्द ही शंकराचार्य की पदवी तक पहुंच गये. लेकिन 1952 में शंकराचार्य की पदवी से अपने आपको मुक्त करके दोबारा हिमालय में खो गये. उनके गुरू तिब्बत में रहते थे. लंबे समय तक उनके पास रहकर साधना, तपस्या की. फिर गुरु के आदेश पर अमेरिका गये, और अमेरिका के पेन्सलवेनिया स्टेट में हिमालयन इंस्टीट्यूट आफ योगा साइन्स एण्ड फिलासफी की स्थापना की.
साठ और सत्तर के दशक में स्वामी सत्यानंद और स्वामी राम ऐसे शुरूआती लोगों में थे जिन्होंने योग के चिकत्सीय महत्व को पश्चिम में स्थापित किया. बिहार स्कूल आफ योग के संस्थापक स्वामी सत्यानंद सरस्वती और हिमालय इंस्टीट्यूट की स्थापना करनेवाले स्वामी राम ने योग को पश्चिम की प्रयोगशालाओं में परखा और इसकी शक्तियों को दुनिया के सामने वैज्ञानिक नजरिए से सामने रखा. अमेरिकी प्रयोगशालाओं में स्वामी राम ने यह साबित किया कि हृदयगति रोककर भी जीवन शेष रहता है और शरीर के तापमान को 115 डिग्री पर ले जाकर भी जीवित रहा जा सकता है जो कि पश्चिम के मशीनी विज्ञान और मनोविज्ञान दोनों के लिए आश्चर्य की बात थी. लेकिन यही स्वामी राम नब्बे के दशक में जब भारत वापस लौटते हैं तो वे 1994 में देहरादून और रिषिकेश के बीच जौली ग्रांट में एक अस्पताल का निर्माण करते हैं. उस वक्त जिन लोगों ने स्वामी राम को अस्पताल बनाते देखा था वे याद करते हैं तो भावुक हो जाते हैं. स्वामी राम के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी स्वामी वेद भारती कई मौकों पर यह कह चुके हैं कि हिमालय की तराई में अस्पताल बनाना उनके जीवन का आखिरी परम उद्येश्य शेष रह गया था. वे कहते थे कि पहाड़ के लोगों को चिकित्सा नहीं मिल पाती है इसलिए उन्हें चिकित्सा मिलनी चाहिए. मुफ्त मिलनी चाहिए. 1996 में जब स्वामी राम का स्वर्गवास हुआ 750 बिस्तरों वाला यह अस्पताल आकार ले चुका था, और तब से लेकर आज तक यह अस्पताल कारोबार तो करता है लेकिन स्वामी जी के सिद्धांतों से समझौता नहीं करता. आज भी अस्पताल मुफ्त इलाज के लिए उपलब्ध है और हर साल इसके खर्चों की पूर्ति के लिए फण्ड जुटाये जाते हैं.
स्वामी राम योग के मास्टर थे. उनके आश्रम में आज भी उनकी अनुभूतियां विद्यमान हैं. पश्चिम में जाते हैं तो योग के चमत्कार को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान पर चुटकियों में भारी सिद्ध कर देते हैं. लेकिन वही स्वामी राम जब भारत लौटते हैं तो अमेरिकी विशेषज्ञों की मदद से एक अत्याधुनिक अस्पताल का निर्माण करवाते हैं. संभवत: स्वामी राम समझते थे कि पहली जरूरत प्राथमिक चिकित्सा है. योग उच्चतर अवस्था में चिकित्सा है. इसके साथ नियम संयम का जो प्रावधान है वह हर सामान्य व्यक्ति के लिए संभव नहीं है. बिहार स्कूल आफ योग का सारा शोध ही यौगिक चिकित्सा पर है लेकिन जब स्वामी सत्यानंद सरस्वती देवघर के रिखिया में क्षेत्र सन्यास लेकर बैठते हैं तो स्थानीय लोगों की चिकित्सा में डाक्टरों की मदद लेते हैं. इसका मतलब है कि जिन दो प्रमुख सन्यासियों ने पश्चिम में योग का डंका बजाया और इसके चिकित्सकीय गुणों से दुनिया का परिचय करवाया वे खुद सामान्य जीवन व्यवहार में आवश्यक होने पर चिकित्सा का सहारा लेते हैं. यहां यह भी जान लीजिए कि इन दोनों सन्यासियों ने खुद कभी दवाईयों की मदद नहीं ली. दोनों का शरीर जीवनभर निरोग रहा और आयु पूरी करके समयसिद्ध तरीके से समाधि ले ली. स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने तो देवघर में पंचाग्नि साधना की थी. जेठ की दोपहरी में चार ओर से अग्नि जलाकर सीधे सूर्य के नीचे दिनभर बैठना होता है. लेकिन स्वामी सत्यानंद को कोई शारीरिक संकट पैदा नहीं हुआ. फिर बाबा रामदेव कैसे योगी हैं कि सात दिन में ही उनकी यह दुर्दशा हो गयी?
बाबा रामदेव जिस कसरत को योग बताकर बाजार में बेचते रहे और पूंजीपतियों के बल पर अपना दवाई का कारोबार बढ़ाते चले गये, वही भ्रष्ट योग उन्हें भारी पड़ गया है. रामलीला मैदान में वे अष्टांग योग शिविर करने का ढोंग कर रहे थे. रामदेव शायद जानते ही होंगे कि राजयोग के जिस अष्टांग योग का नाम लेकर वे रामलीला मैदान पर लीला करने की योजना बना रहे थे उसका पहला पहला सूत्र पांच यम का पालन है. ये पांच यम हैं- अहिंसा, सत्य अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य. जो व्यक्ति इन पांच प्रकार के यम का पालन करता है उसे ही यह अधिकार हासिल होता है कि अब राजयोग की अगली सीढ़ी पर पैर रखे. अगली सीढी है नियम. पांच प्रकार के नियम हैं. इसके बाद आसन. चौरासी प्रकार के मूल आसन हैं. लेकिन आसनों की संख्या नियत नहीं की जा सकती, क्योंकि निरंतर शोध में नये नये आसन विकसित किये जा सकते हैं. फिर प्राणायाम. विभिन्न प्रकार के प्राणायाम हैं. इसके बाद प्रत्याहार, धारणा और ध्यान. ये सात पदानुक्रम हैं जिनका पालन होने पर आठवी अवस्था समाधि प्रकट होती है. लेकिन रामदेव को न तो अष्टांग योग से कुछ लेना देना है और न ही उन्हें अपने भक्तों को समाधि दर्शन करवाना है. उन्हें रूपये पैसे का कारोबार करना था. इसलिए कही का ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा. रामदेव जिन आसनों और प्राणायाम का अभ्यास करवाते हैं उसमें आसनों में तो कोई खतरा नहीं है लेकिन प्राणायम नियबद्ध न हों तो प्राणघातक हो सकते हैं. यह सब योग का अपमान और अभ्यासियों के जीवन के साथ खिलवाड़ है. इससे तात्कालिक लाभ मिलता जरूर दिखता है लेकिन इसका दीर्घकालिक नुकसान ही होता है.
लेकिन रामदेव को किसी अभ्यासी के फायदे नुकसान से भला क्या लेना देना था. वे तो पैसा पीटने में लगे थे. उस दिन भी वे पैसा ही जुटा रहे थे जिस दिन दिल्ली पुलिस ने उन्हें दिल्ली से दरबदर कर दिया. अगर पैसे की उगाही का मामला न अटका होता तो शायद दोपहर में सरकार से किये गये वादे के मुताबिक अपना अनशन खत्म कर देते. लेकिन योग के नाम पर बाबा रामदेव ने आठ साल तक जिस प्रकार देश विदेश में योग की मर्यादा के साथ खिलवाड़ किया है उसकी कीमत तो उन्हें चुकानी ही पड़ती. जरा देखिए तो, दुनियाभर को एलोपैथी दवाओं से दूर रखने की सलाह देनेवाले बाबा रामदेव किस प्रकार सेलाइन वाटर और ग्लूकोज को जीवनदायक मान रहे हैं? क्या यह कम बड़ा मजाक है कि जो बाबा रामदेव अपने आयुर्वेदिक चिकित्सालय में सभी असाध्य रोगों का इलाज होने का दावा करते हैं, लेकिन वही बाबा रामदेव उपवाश से मूर्छित हो जाते हैं तो उनके पास इसका कोई इलाज नहीं मिलता है. क्या आयुर्वेद में उपवास का सिद्धांत ही नहीं है या फिर रामदेव के चरक आचार्य बालकृष्ण को इतनी भी जानकारी नहीं थी कि मूर्छा से बाहर आने के लिए कौन सा आयुर्वेदिक उपचार किया जाता है? जिस आयुर्वेद का पूरा शास्त्र ही नाड़ी विज्ञान पर आधारित है उसका मर्मज्ञ होने का दावा करनेवाला बालकृष्ण अपने बाबा की नाड़ी पकड़कर उनका हाल नहीं जान पाता है और बाबा की पल्स रेट गिर रही है यह भी तब पता चलता है जब बाबा रामदेव अस्पताल ले जाये जाते हैं. ऐसे फर्जी योगाचार्य और आयुर्वेदाचार्य की असलियत जानने का कोई और सबूत चाहिए क्या आपको?
6 comments:
मुझे तो पूरी पोस्ट पढ़कर हंसी आ रही है. अच्छा चुटकुला है.
apna -apna mastisk hai ham kuchh bhi likh sakte hai .
आपके लेख से पूर्वाग्रह की बू आती है इश्वर की सत्ता से बड़ी कोई सत्ता नहीं ,मानव बस प्रयत्न करता है ,राम देव भी प्रयत्नशील हैं,सेवा ,सद्भाव समन्वय की तरफ , वे पूर्णता के हताक्षर नहीं , फिर भी सेवा की तीव्रता अधिक है ,अपेक्षा की कम ...तो सेवार्थ उद्दम का भी मान होना ही चाहिए ,इतना तो हक़ बनता है / आभार जी /
Kya aap Ramdev ke Yog Prachar ki wajah se unko mili popularity se dukhi hain ? Kyaa aapke hisaab se unhone kisiko faaydaa nahi pohonchaya? Kya unke hospitals se milne wali dawayein asar nahi karti?
Aap apne lekh mein kehna kya chahte hain samajh nahi aata .. Ki unka bhrashtachar ke virudh bolna galat hai ya unka yog ke raaste logon ko changa karna?? Jab tak wo sahi baat keh rahe hain, Log unse yog seekh ke theek ho rahe hain mere khayal se sab jayaz hai ... isse koi farak nahi padta ki apna ilaaj wo alopathy se karwayein ye kisi ojha ke paas jake jhaadfoonk se...
बाबा रामदेव कुछ हो न हो लेकिन तेरी भाषा से साबित हो रहा है
कि तू बहुत बड़ा चूतिया है.
अबे चिरकुट
गूगल ने फ्री मे ब्लाग दिया.
इस लिये कुछ भी चिरकुटी मत लिखा कर.
अपनी औकात मे रहकर लिख.बाबा रामदेव कुछ हो न हो लेकिन तेरी भाषा से साबित हो रहा है
कि तू बहुत बड़ा चूतिया है.
अबे चिरकुट
गूगल ने फ्री मे ब्लाग दिया.
इस लिये कुछ भी चिरकुटी मत लिखा कर.
अपनी औकात मे रहकर लिख.
अपनी औकात मे रहकर लिख.बाबा रामदेव कुछ हो न हो लेकिन तेरी भाषा से लेख से पूर्वाग्रह की बू आती है .....
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